Saturday, April 5, 2008

कुछ इश्क किया कुछ काम किया

Came across one beautiful poem by Faiz Ahmed Faiz

वो लोग बहुत ख़ुशक़िस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिक़ी करते थे
हम जीते जी मसरूफ़ रहे
कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

काम इश्क़ के आड़े आता रहा
और इश्क़ से काम उलझता रहा
फिर आख़िर तंग आकर हम ने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया


- फैज़ अहमद फैज़

Thursday, April 3, 2008

एक बस तू ही नहीं

एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा
मैंने जो *संग तराशा वो खुदा हो बैठा

उठ के मंजिल ही अगर आए तो शायद कुछ हो
शौक़-ए-मंजिल तो मेरा *आबलापा हो बैठा

*मसलेहत छीन गई *कुव्वत-ए-गुफ्तार मगर
कुछ न कहना ही मेरा मेरी *सदा हो बैठा

शुक्रिया ए मेरे कातिल ए मसीहा मेरे
ज़हर जो तूने दिया था वो दवा हो बैठा

-फरहत शहजाद

संग=Stone
आबलापा= Exhausted/Fatigued
मसलेहत = Prudent Measure
कुव्वत--गुफ्तार= Quvvat means strength and Guftaar means conversation. Hence the meaning.
सदा= Voice

Here the word "Khuda" in the first stanza refers to one of the qualities of God. God is considered to be shapeless in Islam.